श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 111: रामायण- काव्य का उपसंहार और इसकी महिमा  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  7.111.17-18 
 
 
पुत्रदाराश्च वर्धन्ते सम्पद: संततिस्तथा॥ १७॥
सत्यमेतद् विदित्वा तु श्रोतव्यं नियतात्मभि:।
गायत्र्याश्च स्वरूपं तद् रामायणमनुत्तमम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  इसके सुनने से स्त्री-पुत्रों की प्राप्ति होती है, धन और संतति बढ़ती है। इसके श्रवण से मन वश में रहता है और यह एक सत्य बात है। रामायण काव्य श्री गायत्री का ही स्वरूप है। जो पुत्र के बिना होता है उसे पुत्र की प्राप्ति होती है और जो निर्धन होता है उसे धन की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इसे पढ़ता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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