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सर्ग 111: रामायण- काव्य का उपसंहार और इसकी महिमा
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श्लोक 12
श्लोक
7.111.12
अश्वमेधसहस्रस्य वाजपेयायुतस्य च।
लभते श्रवणादेव सर्गस्यैकस्य मानव:॥ १२॥
अनुवाद
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इस काव्य के एक सर्ग को सुनने मात्र से ही मनुष्य को एक हजार अश्वमेध यज्ञ और दस हजार वाजपेय यज्ञों के समान पुण्य फल प्राप्त हो जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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