श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 108: श्रीरामचन्द्रजी का भाइयों, सुग्रीव आदि वानरों तथा रीछों के साथ परमधाम जाने का निश्चय और विभीषण, हनुमान्, जाम्बवान्, मैन्द एवं द्विविद को इस भूतल पर ही रहने का आदेश देना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.108.15 
 
 
न चान्यदद्य वक्तव्यमतो वीर न शासनम्।
विहन्यमानमिच्छामि मद्विधेन विशेषत:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर! आज इससे भिन्न आप मुझसे कुछ भी न कहें; क्योंकि इससे बढ़कर मेरे लिए कोई दूसरा दंड नहीं होगा। मैं नहीं चाहता हूँ कि किसी के विशेष रूप से मेरे जैसे सेवक द्वारा आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया जाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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