श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 107: वसिष्ठजी के कहने से श्रीराम का पुरवासियों को अपने साथ ले जाने का विचार तथा कुश और लव का राज्याभिषेक करना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.107.15 
 
 
एषा न: परमा प्रीतिरेष न: परमो वर:।
हृद‍्गता न: सदा प्रीतिस्तवानुगमने नृप॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  हमारे लिए आपकी सबसे बड़ी दया और सबसे अच्छा उपहार यही होगा कि इस संसार में हमेशा आपका अनुसरण करें। आपकी आज्ञाओं का पालन करना ही हमारे लिए हृदय से प्रसन्नता का कारण होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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