वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 7: उत्तर काण्ड
»
सर्ग 107: वसिष्ठजी के कहने से श्रीराम का पुरवासियों को अपने साथ ले जाने का विचार तथा कुश और लव का राज्याभिषेक करना
»
श्लोक 15
श्लोक
7.107.15
एषा न: परमा प्रीतिरेष न: परमो वर:।
हृद्गता न: सदा प्रीतिस्तवानुगमने नृप॥ १५॥
अनुवाद
play_arrowpause
हमारे लिए आपकी सबसे बड़ी दया और सबसे अच्छा उपहार यही होगा कि इस संसार में हमेशा आपका अनुसरण करें। आपकी आज्ञाओं का पालन करना ही हमारे लिए हृदय से प्रसन्नता का कारण होगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.