हृद्गतो ह्यसि सम्प्राप्तो न मे तत्र विचारणा।
मया हि सर्वकृत्येषु देवानां वशवर्तिना।
स्थातव्यं सर्वसंहार यथा ह्याह पितामह:॥ १९॥
अनुवाद
‘काल! मैंने मन से तुम्हारे बारे में सोचा था और तुम यहाँ आ गये हो। इसलिये मुझे इस बारे में कोई चिंता नहीं है। हे सर्वनाशकारी काल! मुझे सभी कार्यों में सदैव देवताओं का आज्ञाकारी होना चाहिए, जैसा कि पितामह ने कहा है।’
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे चतुरधिकशततम: सर्ग: ॥ १ ०४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें एक सौ चारवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०४॥