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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 104: कालका श्रीरामचन्द्रजी को ब्रह्माजी का संदेश सुनाना और श्रीराम का उसे स्वीकार करना
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श्लोक 18
श्लोक
7.104.18
त्रयाणामपि लोकानां कार्यार्थं मम सम्भव:।
भद्रं तेऽस्तु गमिष्यामि यत एवाहमागत:॥ १८॥
अनुवाद
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त्रिलोकी के उद्देश्य की सिद्धि के लिए ही मेरा अवतार हुआ था। वह उद्देश्य अब पूर्ण हो गया है। इसलिए तुम्हारा कल्याण हो, अब मैं वहीं जाऊँगा जहाँ से आया था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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