इस प्रकार लक्ष्मण को द्वार पर नियुक्त करके श्रीरामजी ने आने वाले महर्षि से कहा - "हे महर्षि! अब आप निःशंक होकर वह बात कहें, जिसे कहना आपको अभीष्ट है या जिसे कहने के लिए ही आप यहां भेजे गए हैं। मेरे हृदय में भी उसे सुनने की उत्कण्ठा है।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे त्र्यधिकशततम: सर्ग:॥ १०३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें एक सौ तीनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०३॥