श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 103: श्रीराम के यहाँ कालका आगमन और एक कठोर शर्त के साथ उनका वार्ता के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 16-17
 
 
श्लोक  7.103.16-17 
 
 
ततो निक्षिप्य काकुत्स्थो लक्ष्मणं द्वारि संग्रहम्।
तमुवाच मुने वाक्यं कथयस्वेति राघव:॥ १६॥
तत् ते मनीषितं वाक्यं येन वासि समाहित:।
कथयस्वाविशङ्कस्त्वं ममापि हृदि वर्तते॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार लक्ष्मण को द्वार पर नियुक्त करके श्रीरामजी ने आने वाले महर्षि से कहा - "हे महर्षि! अब आप निःशंक होकर वह बात कहें, जिसे कहना आपको अभीष्ट है या जिसे कहने के लिए ही आप यहां भेजे गए हैं। मेरे हृदय में भी उसे सुनने की उत्कण्ठा है।"
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे त्र्यधिकशततम: सर्ग:॥ १०३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें एक सौ तीनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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