श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 102: श्रीराम की आज्ञा से भरत और लक्ष्मण द्वारा कुमार अङ्गद और चन्द्रकेतु की कारुपथ देश के विभिन्न राज्यों पर नियुक्ति  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.102.17 
 
 
विहृत्य कालं परिपूर्णमानसा:
श्रिया वृता धर्मपुरे च संस्थिता:।
त्रय: समिद्धाहुतिदीप्ततेजसो
हुताग्नय: साधुमहाध्वरे त्रय:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्म साधन के स्थान अयोध्यापुरी में रहते हुए तीनों भाई समृद्ध और सम्पन्न थे। वे अपने लोगों से मिलते थे और उनकी देखभाल करते थे। उनके सारे सपने पूरे हो गए थे और वे महायज्ञ में भेंट किए गए दीप्त तेजस्वी गृहपति, अहवनीय और दक्षिण नामक तीन अग्नियों की तरह चमक रहे थे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे द्वॺधिकशततम: सर्ग: ॥ १ ०२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें एक सौ दोवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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