अध्यर्धमासमुषिता पथि सेना निरामया।
हृष्टपुष्टजनाकीर्णा केकयं समुपागमत्॥ २५॥
अनुवाद
अर्धमास की यात्रा के पश्चात वह सेना, जो निरोग तथा हृष्ट-पुष्ट जनों से भरी हुई थी, कुशलतापूर्वक केकय देश में जा पहुँची।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे शततम: सर्ग: ॥ १ ००॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें सौवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ००॥