श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 99: श्रीराम और रावण का युद्ध  »  श्लोक 42-45
 
 
श्लोक  6.99.42-45 
 
 
सिंहव्याघ्रमुखांश्चापि कङ्ककोकमुखानपि।
गृध्रश्येनमुखांश्चापि शृगालवदनांस्तथा॥ ४२॥
ईहामृगमुखांश्चापि व्यादितास्यान् भयावहान्।
पञ्चास्याँल्लेलिहानांश्च ससर्ज निशितान् शरान्॥ ४३॥
शरान् खरमुखांश्चान्यान् वराहमुखसंश्रितान्।
श्वानकुक्कुटवक्त्रांश्च मकराशीविषाननान्॥ ४४॥
एतांश्चान्यांश्च मायाभि: ससर्ज निशिताञ्छरान्।
रामं प्रति महातेजा: क्रुद्ध: सर्प इव श्वसन्॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  तब रावण ने सिंह, बाघ, कोंक, चक्रवाक, गिद्ध, बाज़, सियार, भेड़िये, गधे, सूअर, कुत्ते, मुर्गे, मगरमच्छ और ज़हरीले साँपों जैसे मुँह वाले तीखे बाणों की वर्षा करनी शुरू कर दी। वे बाण जबड़े चाटते हुए और मुँह खोले हुए पाँच मुँह वाले भयानक साँपों की तरह लग रहे थे। क्रुद्ध होकर महातेजस्वी रावण ने फुफकारते हुए सर्प की तरह श्रीराम पर इनके साथ-साथ अन्य प्रकार के तीखे बाणों का भी प्रयोग किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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