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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 33
श्लोक
6.99.33
उभौ हि येन व्रजतस्तेन तेन शरोर्मय:।
ऊर्मयो वायुना विद्धा जग्मु: सागरयोरिव॥ ३३॥
अनुवाद
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जहाँ-जहाँ भी वे दोनों जाते, उनके मार्ग का अनुसरण करते हुए बाणों की एक लहर सी उठती हुई जाती थी। ठीक उसी प्रकार जैसे वायु के थपेड़े खाकर दो समुद्रों के जल में उग्र तरंगें उठती हों।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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