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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 29
श्लोक
6.99.29
गवाक्षितमिवाकाशं बभूव शरवृष्टिभि:।
महावेगै: सुतीक्ष्णाग्रैर्गृध्रपत्रै: सुवाजितै:॥ २९॥
अनुवाद
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आकाश गिद्ध के सुन्दर पंखों से सुशोभित तीक्ष्णाग्र महान वेगशाली बाणों की अविरल वर्षा से ऐसा दिखाई दे रहा था, मानो उसमें बहुत से झरोखे लग गये हों।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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