श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 94: राक्षसियों का विलाप  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  6.94.30 
 
 
तदिदं मानुषं मन्ये प्राप्तं नि:संशयं भयम्।
जीवितान्तकरं घोरं रक्षसां रावणस्य च॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए, मुझे यह निश्चित रूप से लगता है कि राक्षसों और रावण के जीवन का अंत करने वाला यह घोर भय निस्संदेह मनुष्यों की ओर से ही प्राप्त हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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