श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 92: रावण का शोक तथा सुपार्श्व के समझाने से उसका सीता-वध से निवृत्त होना  »  श्लोक 55-56h
 
 
श्लोक  6.92.55-56h 
 
 
हनूमतस्तु तद् वाक्यं न कृतं क्षुद्रया मया।
यद्यहं तस्य पृष्ठेन तदायासमनिर्जिता॥ ५५॥
नाद्यैवमनुशोचेयं भर्तुरङ्कगता सती।
 
 
अनुवाद
 
  ‘मुझ क्षुद्र (मूर्ख) नारीने हनुमान् की कही हुई वह बात नहीं मानी। यदि श्रीरामद्वारा जीती न जानेपर भी उस समय हनुमान् की पीठपर बैठकर चली गयी होती तो पतिके अङ्कमें स्थान पाकर आज इस तरह बारम्बार शोक नहीं करती॥ ५५ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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