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श्लोक 24
श्लोक
6.90.24
संदर्शयामास तदा रावणिं रघुनन्दन:।
असम्भ्रान्तो महातेजास्तदद्भुतमिवाभवत्॥ २४॥
अनुवाद
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रघुकुल के नन्दन महातेजस्वी लक्ष्मण के मन में तनिक भी घबराहट नहीं थी। उन्होंने रावण के कुमार, मेघनाद को जो अपना पौरुष दिखाया, वह अद्भुत-सा ही था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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