श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 89: विभीषण का राक्षसों पर प्रहार, उनका वानरयूथ पतियों को प्रोत्साहन देना, लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित के सारथि का और वानरों द्वारा उसके घोड़ों का वध  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  6.89.47 
 
 
विषण्णवदनं दृष्ट्वा राक्षसं हरियूथपा:।
तत: परमसंहृष्टा लक्ष्मणं चाभ्यपूजयन्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  विषाद से व्याप्त उस राक्षस को देखकर वानर-यूथपति अति प्रसन्न हुए और लक्ष्मण की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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