श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 88: लक्ष्मण और इन्द्रजित की परस्पर रोषभरी बातचीत और घोर युद्ध  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  6.88.9 
 
 
सृजत: शरवर्षाणि क्षिप्रहस्तस्य संयुगे।
जीमूतस्येव नदत: क: स्थास्यति ममाग्रत:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  युद्ध के मैदान में जब मैं अपने हाथों को तेजी से चलाकर बाणों की वर्षा करना आरम्भ करूँगा और मेरी गर्जना मेघ के समान गूंजेगी, तो कौन मेरे सामने खड़ा रह पाएगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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