श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 88: लक्ष्मण और इन्द्रजित की परस्पर रोषभरी बातचीत और घोर युद्ध  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  6.88.31 
 
 
सुपत्रवाजिता बाणा ज्वलिता इव पन्नगा:।
नैर्ऋतोरस्यभासन्त सवितू रश्मयो यथा॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  ज्वलित साँपों के समान लगने वाले और बहुत तेज चलने वाले सुंदर पंखों से सुसज्जित वे बाण उस राक्षस के सीने पर सूर्य की किरणों की तरह चमक रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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