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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 28
श्लोक
6.87.28
अद्येह व्यसनं प्राप्तं यन्मां परुषमुक्तवान्।
प्रवेष्टुं न त्वया शक्यं न्यग्रोधं राक्षसाधम॥ २८॥
अनुवाद
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‘नीच राक्षस! तूने मुझसे जो कठोर बात कही है, उसीका यह फल है कि आज तुझपर यहाँ घोर संकट आया है। अब तू बरगदके नीचेतक नहीं जा सकता॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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