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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत
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श्लोक 27
श्लोक
6.87.27
अतिमानश्च बालश्च दुर्विनीतश्च राक्षस।
बद्धस्त्वं कालपाशेन ब्रूहि मां यद् यदिच्छसि॥ २७॥
अनुवाद
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‘राक्षस! तू अत्यन्त अभिमानी, उद्दण्ड और बालक (मूर्ख) है, कालके पाशमें बँधा हुआ है; इसलिये तेरी जो-जो इच्छा हो, मुझे कह ले॥ २७॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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