श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  6.87.20 
 
 
न रमे दारुणेनाहं न चाधर्मेण वै रमे।
भ्रात्रा विषमशीलोऽपि कथं भ्राता निरस्यते॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  दुष्टतापूर्ण कर्म में मेरा मन नहीं लगता है। और मैं अधर्म में भी कोई रुचि नहीं रखता हूँ। यदि अपने भाइ का स्वभाव अलग भी क्यों न हो, फिर भी कोई बड़ा भाई अपने छोटे भाई को घर से कैसे निकाल सकता है? (लेकिन मुझे घर से निकाल दिया गया है, तो फिर मुझे किसी दूसरे सत्पुरुष की शरण क्यों न लूँ?)
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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