वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत
»
श्लोक 18
श्लोक
6.87.18
इत्युक्तो भ्रातृपुत्रेण प्रत्युवाच विभीषण:।
अजानन्निव मच्छीलं किं राक्षस विकत्थसे॥ १८॥
अनुवाद
play_arrowpause
अपने भतीजेके ऐसा कहनेपर विभीषणने उत्तर दिया—‘राक्षस! तू आज ऐसी शेखी क्यों बघारता है? जान पड़ता है तुझे मेरे स्वभावका पता ही नहीं है॥ १८॥
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.