श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  6.87.18 
 
 
इत्युक्तो भ्रातृपुत्रेण प्रत्युवाच विभीषण:।
अजानन्निव मच्छीलं किं राक्षस विकत्थसे॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  अपने भतीजेके ऐसा कहनेपर विभीषणने उत्तर दिया—‘राक्षस! तू आज ऐसी शेखी क्यों बघारता है? जान पड़ता है तुझे मेरे स्वभावका पता ही नहीं है॥ १८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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