श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  6.87.14 
 
 
नैतच्छिथिलया बुद्धॺा त्वं वेत्सि महदन्तरम्।
क्व च स्वजनसंवास: क्व च नीच पराश्रय:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  अरे नीच और राक्षसी प्रवृत्ति वाले! तुम अपनी कमजोर बुद्धि के कारण इस बड़े अंतर को नहीं समझ पा रहे हो कि एक ओर स्वजनों के साथ रहकर स्वतंत्रता का आनंद लेना है और दूसरी ओर दूसरों की दासता में जीना है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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