श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  6.87.12 
 
 
न ज्ञातित्वं न सौहार्दं न जातिस्तव दुर्मते।
प्रमाणं न च सौदर्यं न धर्मो धर्मदूषण॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘दुर्मते! तुममें न तो कुटुम्बीजनोंके प्रति अपनापनका भाव है, न आत्मीयजनोंके प्रति स्नेह है और न अपनी जातिका अभिमान ही है। तुममें कर्तव्य-अकर्तव्यकी मर्यादा, भ्रातृप्रेम और धर्म कुछ भी नहीं है। तुम राक्षस-धर्मको कलंकित करनेवाले हो॥ १२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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