न ज्ञातित्वं न सौहार्दं न जातिस्तव दुर्मते।
प्रमाणं न च सौदर्यं न धर्मो धर्मदूषण॥ १२॥
अनुवाद
‘दुर्मते! तुममें न तो कुटुम्बीजनोंके प्रति अपनापनका भाव है, न आत्मीयजनोंके प्रति स्नेह है और न अपनी जातिका अभिमान ही है। तुममें कर्तव्य-अकर्तव्यकी मर्यादा, भ्रातृप्रेम और धर्म कुछ भी नहीं है। तुम राक्षस-धर्मको कलंकित करनेवाले हो॥ १२॥