श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 87: इन्द्रजित और विभीषण की रोषपूर्ण बातचीत  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  6.87.10 
 
 
एवमुक्तो महातेजा मनस्वी रावणात्मज:।
अब्रवीत् परुषं वाक्यं तत्र दृष्ट्वा विभीषणम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  जब लक्ष्मण ने यह कहा, तो महातेजस्वी और स्वाभिमानी रावणकुमार ने वहाँ विभीषण को उपस्थित देखकर कठोर शब्दों में कहा—॥ १०॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.