श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 86: वानरों और राक्षसों का युद्ध, हनुमान्जी के द्वारा राक्षस सेना का संहार और उनका इन्द्रजित को द्वन्द्वयुद्ध के लिये ललकारना तथा लक्ष्मण का उसे देखना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  6.86.35 
इत्येवमुक्तस्तु तदा महात्मा
विभीषणेनारिविभीषणेन।
ददर्श तं पर्वतसंनिकाशं
रथस्थितं भीमबलं दुरासदम्॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
उस समय जब शत्रुओं को भयभीत करने वाले विभीषण ने ऐसा कहा, तब महात्मा लक्ष्मण ने रथ पर बैठे हुए उस भयंकर एवं शक्तिशाली पर्वताकार दुर्जय राक्षस को देखा।
 
At that time, when Vibhishana, who frightened the enemies, said this, Mahatma Lakshmana saw that fierce and powerful mountain-sized Durjay demon sitting on the chariot.
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे षडशीतितम: सर्ग: ॥ ८ ६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें छियासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ ६॥
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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