श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 86: वानरों और राक्षसों का युद्ध, हनुमान्जी के द्वारा राक्षस सेना का संहार और उनका इन्द्रजित को द्वन्द्वयुद्ध के लिये ललकारना तथा लक्ष्मण का उसे देखना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  6.86.17 
 
 
दृष्ट्वैव तु रथस्थं तं पर्यवर्तत तद् बलम्।
रक्षसां भीमवेगानां लक्ष्मणेन युयुत्सताम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  देखते ही लक्ष्मण के साथ युद्ध करने की इच्छा रखने वाली, भयंकर वेग वाली राक्षसों की सेना रथ पर बैठे हुए इन्द्रजित के चारों ओर घूम गई।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.