वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 85: विभीषण के अनुरोध से श्रीरामचन्द्रजी का लक्ष्मण को इन्द्रजित के वध के लिये जाने की आज्ञा देना और सेना सहित लक्ष्मण का निकुम्भिला-मन्दिर के पास पहुँचना
»
श्लोक 8
श्लोक
6.85.8
त्यज राजन्निमं शोकं मिथ्या संतापमागतम्।
यदियं त्यज्यतां चिन्ता शत्रुहर्षविवर्धिनी॥ ८॥
अनुवाद
play_arrowpause
राजन्! इस व्यर्थ के शोक और संताप को त्याग दें और इस चिंता को भी अपने मन से निकाल दें, क्योंकि यह आपके शत्रुओं का उत्साह बढ़ाती है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.