श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 85: विभीषण के अनुरोध से श्रीरामचन्द्रजी का लक्ष्मण को इन्द्रजित के वध के लिये जाने की आज्ञा देना और सेना सहित लक्ष्मण का निकुम्भिला-मन्दिर के पास पहुँचना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  6.85.19-20 
 
 
तस्यान्तरिक्षे चरत: सरथस्य महायश:।
न गतिर्ज्ञायते वीर सूर्यस्येवाभ्रसम्प्लवे॥ १९॥
राघवस्तु रिपोर्ज्ञात्वा मायावीर्यं दुरात्मन:।
लक्ष्मणं कीर्तिसम्पन्नमिदं वचनमब्रवीत्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  महायशस्वी वीर लक्ष्मण! जब इन्द्रजित् रथ सहित आकाश में उड़ता है, तो वह बादलों में छिपे हुए सूर्य की तरह अदृश्य हो जाता है। उसकी गति का पता लगाना असंभव है। यह कहकर भगवान श्रीराम ने अपने शत्रु, दुरात्मा इन्द्रजित् की मायाशक्ति को समझा और यशस्वी वीर लक्ष्मण से यह बात कही।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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