श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 84: विभीषण का श्रीराम को इन्द्रजित की माया का रहस्य बताकर सीता के जीवित होने का विश्वास दिलाना और लक्ष्मण को सेना सहित निकुम्भिला-मन्दिर में भेजने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  6.84.23 
 
 
समाप्तकर्मा हि स राक्षसर्षभो
भवत्यदृश्य: समरे सुरासुरै:।
युयुत्सता तेन समाप्तकर्मणा
भवेत् सुराणामपि संशयो महान्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसों में श्रेष्ठ इन्द्रजित जब अपना अनुष्ठान पूरा कर लेगा, तब युद्ध के मैदान में देवता और असुर भी उसे देख नहीं पाएँगे। अपने कर्म को पूरा करके जब वह युद्ध की इच्छा से रणभूमि में खड़ा होगा, उस समय देवताओं को भी अपने जीवन की रक्षा के विषय में बहुत संदेह होने लगेगा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे चतुरशीतितम: सर्ग: ॥ ८ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें चौरासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ ४॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.