श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 84: विभीषण का श्रीराम को इन्द्रजित की माया का रहस्य बताकर सीता के जीवित होने का विश्वास दिलाना और लक्ष्मण को सेना सहित निकुम्भिला-मन्दिर में भेजने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  6.84.17-18 
 
 
सीदते हि बलं सर्वं दृष्ट्वा त्वां शोककर्शितम्॥ १७॥
इह त्वं स्वस्थहृदयस्तिष्ठ सत्त्वसमुच्छ्रित:।
लक्ष्मणं प्रेषयास्माभि: सह सैन्यानुकर्षिभि:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रभु! आप इतने धीर-वीर क्यों नहीं रहते कि सेना को भी धीर रखें? आप तो हमेशा से धैर्यवान रहे हैं। अतः आपको अभी यहीं रहना चाहिए। लक्ष्मण को सेना के साथ आगे भेज दीजिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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