श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 83: सीता के मारे जाने की बात सुनकर श्रीराम का शोक से मूर्च्छित होना और लक्ष्मण का उन्हें समझाते हुए पुरुषार्थ के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  6.83.37 
 
 
अर्थस्यैते परित्यागे दोषा: प्रव्याहृता मया।
राज्यमुत्सृजता धीर येन बुद्धिस्त्वया कृता॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने अर्थ के त्याग से मित्रता की हानि जैसे दोषों के बारे में पहले ही बता दिया है। मुझे नहीं पता कि जब आपने राज्य छोड़ने का फैसला किया, तो आपने ये सब सोचा था या नहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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