श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 83: सीता के मारे जाने की बात सुनकर श्रीराम का शोक से मूर्च्छित होना और लक्ष्मण का उन्हें समझाते हुए पुरुषार्थ के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.83.27 
 
 
बलस्य यदि चेद् धर्मो गुणभूत: पराक्रमै:।
धर्ममुत्सृज्य वर्तस्व यथा धर्मे तथा बले॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  बल ही धर्म का अंग या उपकरण है तो धर्म छोड़कर पराक्रमपूर्ण व्यवहार करो। जैसे कि तुमने धर्म को प्रधान मानकर धर्म में प्रवृत्त हुए हो, उसी प्रकार बल को प्रधान मानकर बल या पुरुषार्थ में ही लगो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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