बलस्य यदि चेद् धर्मो गुणभूत: पराक्रमै:।
धर्ममुत्सृज्य वर्तस्व यथा धर्मे तथा बले॥ २७॥
अनुवाद
बल ही धर्म का अंग या उपकरण है तो धर्म छोड़कर पराक्रमपूर्ण व्यवहार करो। जैसे कि तुमने धर्म को प्रधान मानकर धर्म में प्रवृत्त हुए हो, उसी प्रकार बल को प्रधान मानकर बल या पुरुषार्थ में ही लगो।