श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 83: सीता के मारे जाने की बात सुनकर श्रीराम का शोक से मूर्च्छित होना और लक्ष्मण का उन्हें समझाते हुए पुरुषार्थ के लिये उद्यत होना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.83.25 
 
 
यदि सत् स्यात् सतां मुख्य नासत् स्यात् तव किंचन।
त्वया यदीदृशं प्राप्तं तस्मात् तन्नोपपद्यते ॥ २ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  सतपुरुषों में श्रेष्ठ श्रीरघुवीर! यदि सत्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त होने वाला भाग्य सदैव शुभ ही होता, तो आपको किसी भी प्रकार का दुःख या अशुभ प्राप्त नहीं होता। यदि आपको ऐसा दुःख प्राप्त हुआ है, तो यह कथन कि सत्कर्मों से प्राप्त भाग्य सदैव शुभ होता है, संगत नहीं बैठता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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