श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 82: हनुमान्जी के नेतृत्व में वानरों और निशाचरों का युद्ध, हनुमान्जी का श्रीराम के पास लौटना और इन्द्रजित का निकुम्भिला-मन्दिर में जाकर होम करना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  6.82.28 
 
 
अथेन्द्रजिद् राक्षसभूतये तु
जुहाव हव्यं विधिना विधानवित्।
दृष्ट्वा व्यतिष्ठन्त च राक्षसास्ते
महासमूहेषु नयानयज्ञा:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  इन्द्रजित यज्ञ के विधि-विधानों का ज्ञाता था। उसने सभी राक्षसों के कल्याण के लिए विधिपूर्वक हवन करना शुरू किया। उस यज्ञ को देखकर महायुद्ध के समय नीति-अनीति और कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान रखने वाले राक्षस खड़े हो गये।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे द्वॺशीतितम: सर्ग: ॥ ८ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें बयासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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