उरोगतेन निष्केण भुजस्थैरङ्गदैरपि।
कुण्डलाभ्यां च चित्राभ्यां मालया च सचित्रया॥ ५॥
निकुम्भो भूषणैर्भाति तेन स्म परिघेण च।
यथेन्द्रधनुषा मेघ: सविद्युत्स्तनयित्नुमान्॥ ६॥
अनुवाद
उसके सीने में सोने का पदक था। भुजाओं में बाजूबंद सुशोभित हो रहे थे। कानों में मनमोहक कुण्डल झिलमिला रहे थे और गले में सुन्दर माला चमक रही थी। इन सभी आभूषणों और उस परिघ से निकुम्भ की वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे बिजली और गरज से युक्त बादल इन्द्रधनुष से सजा हुआ होता है।