श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 76: अङ्गद के द्वारा कम्पन और प्रजङ्घका द्विविद के द्वारा शोणिताक्षका, मैन्द के द्वारा यूपाक्षका और सुग्रीव के द्वारा कुम्भ का वध  »  श्लोक 52-54
 
 
श्लोक  6.76.52-54 
 
 
तस्य सुस्राव रुधिरं पिहिते चास्य लोचने॥ ५२॥
अङ्गद: पाणिना नेत्रे पिधाय रुधिरोक्षिते।
सालमासन्नमेकेन परिजग्राह पाणिना॥ ५३॥
सम्पीडॺोरसि सस्कन्धं करेणाभिनिवेश्य च।
किंचिदभ्यवनम्यैनमुन्ममाथ महारणे॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
 
  अंगद की भौंहों से रक्त बहने लगा और उनकी आँखें बंद हो गईं। तब उन्होंने एक हाथ से खून से भीगी हुई अपनी दोनों आँखों को ढक लिया और दूसरे हाथ से पास ही खड़े हुए एक साल के वृक्ष को पकड़ा। फिर छाती से दबाकर तने सहित उस वृक्ष को कुछ झुका दिया और उस महासमर में एक ही हाथ से उसे उखाड़ लिया॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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