श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 76: अङ्गद के द्वारा कम्पन और प्रजङ्घका द्विविद के द्वारा शोणिताक्षका, मैन्द के द्वारा यूपाक्षका और सुग्रीव के द्वारा कुम्भ का वध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.76.27 
 
 
स संज्ञां प्राप्य तेजस्वी वालिपुत्र: प्रतापवान्।
प्रजङ्घस्य शिर: कायात् पातयामास मुष्टिना॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  इसके बाद होश में आने पर महातेजस्वी और प्रतापी वालि के पुत्र अंगद ने प्रजङ्घ को ऐसा घूँसा मारा कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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