तत्पश्चात्, बलशाली पवनकुमार हनुमान जी ने अत्यधिक गति से ओषधियों के उस पर्वत को फिर से हिमालय पर्वत पर पहुँचाया और उसके बाद श्रीराम के पास वापस लौट आए।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे चतु:सप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें चौहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ४॥