श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 77
 
 
श्लोक  6.74.77 
 
 
ततो हरिर्गन्धवहात्मजस्तु
तमोषधीशैलमुदग्रवेग:।
निनाय वेगाद्धिमवन्तमेव
पुनश्च रामेण समाजगाम॥ ७७॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात्, बलशाली पवनकुमार हनुमान जी ने अत्यधिक गति से ओषधियों के उस पर्वत को फिर से हिमालय पर्वत पर पहुँचाया और उसके बाद श्रीराम के पास वापस लौट आए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे चतु:सप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें चौहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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