श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 70
 
 
श्लोक  6.74.70 
 
 
स तेन शैलेन भृशं रराज
शैलोपमो गन्धवहात्मजस्तु।
सहस्रधारेण सपावकेन
चक्रेण खे विष्णुरिवार्पितेन॥ ७०॥
 
 
अनुवाद
 
  वायुदेवता के पुत्र हनुमानजी ऐसा प्रतीत हो रहे थे मानो विशाल पर्वत ही हों और उस चोटी पर विराजमान हों। जिस प्रकार भगवान विष्णु सहस्रधार और अग्नि की ज्वाला से युक्त चक्र को धारण कर अत्यंत शोभायमान होते हैं, उसी प्रकार हनुमानजी भी उस पर्वत शिखर पर सुशोभित दिखाई दे रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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