श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 68
 
 
श्लोक  6.74.68 
 
 
स तं समुत्पाटॺ खमुत्पपात
वित्रास्य लोकान् ससुरासुरेन्द्रान्।
संस्तूयमान: खचरैरनेकै-
र्जगाम वेगाद् गरुडोग्रवेग:॥ ६८॥
 
 
अनुवाद
 
  हनुमान जी उस पर्वत को उखाड़कर आकाश में उड़ चले। उनकी उस उड़ान के वेग से देवताओं और असुरों सहित सभी लोक डर गए। उस समय कई आकाशचारी प्राणी उनकी स्तुति कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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