श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  6.74.66 
 
 
किमेतदेवं सुविनिश्चितं ते
यद् राघवे नासि कृतानुकम्प:।
पश्याद्य मद‍्बाहुबलाभिभूतो
विकीर्णमात्मानमथो नगेन्द्र॥ ६६॥
 
 
अनुवाद
 
  नगेन्द्र! तूने तय कर लिया है कि श्री रघुनाथ जी पर भी तू अनुग्रह करने में असमर्थ रहोगे। ऐसा निश्चय करने का आधार क्या है? आज तू मेरे बाहुबल से परास्त होकर अपने-आपको सर्वत्र बिखरा हुआ देख रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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