स ता महात्मा हनुमानपश्यं-
श्चुकोप रोषाच्च भृशं ननाद।
अमृष्यमाणोऽग्निसमानचक्षु-
र्महीधरेन्द्रं तमुवाच वाक्यम्॥ ६५॥
अनुवाद
महात्मा हनुमानजी ने उन औषधियों को न देखकर क्रोधित होकर जोर-जोर से गर्जना की। ओषधियों का छिपाना उनके लिए असहनीय हो गया था। उनकी आंखें अग्नि के समान लाल हो गई थीं और उन्होंने उस पर्वतराज से इस प्रकार कहा-।