श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 65
 
 
श्लोक  6.74.65 
 
 
स ता महात्मा हनुमानपश्यं-
श्चुकोप रोषाच्च भृशं ननाद।
अमृष्यमाणोऽग्निसमानचक्षु-
र्महीधरेन्द्रं तमुवाच वाक्यम्॥ ६५॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा हनुमानजी ने उन औषधियों को न देखकर क्रोधित होकर जोर-जोर से गर्जना की। ओषधियों का छिपाना उनके लिए असहनीय हो गया था। उनकी आंखें अग्नि के समान लाल हो गई थीं और उन्होंने उस पर्वतराज से इस प्रकार कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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