श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 63
 
 
श्लोक  6.74.63 
 
 
स योजनसहस्राणि समतीत्य महाकपि:।
दिव्यौषधिधरं शैलं व्यचरन्मारुतात्मज:॥ ६३॥
 
 
अनुवाद
 
  महाकपि पवनपुत्र हनुमानजी ने हजारों योजन की दूरी लाँघकर उस स्थान पर पहुँचे और दिव्य औषधियों से युक्त उस पर्वत शिखर पर विचरण करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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