श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  6.74.59 
 
 
स ब्रह्मकोशं रजतालयं च
शक्रालयं रुद्रशरप्रमोक्षम्।
हयाननं ब्रह्मशिरश्च दीप्तं
ददर्श वैवस्वतकिंकरांश्च॥ ५९॥
 
 
अनुवाद
 
  पर्वत पर हिरण्यगर्भ भगवान ब्रह्मा का स्थान, उनके दूसरे स्वरूप रजतनाभि का स्थान, इंद्र का भवन, जहाँ खड़े होकर रुद्रदेव ने त्रिपुरासुर पर बाण छोड़ा था वह स्थान, भगवान हयग्रीव का वासस्थान और ब्रह्मास्त्र देवता का दीप्तिमान स्थान - ये सभी दिव्य स्थान दिखाई दिए। साथ ही यमराज के सेवक भी वहाँ दृष्टिगोचर हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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