स तं समासाद्य महानगेन्द्र-
मतिप्रवृद्धोत्तमहेमशृङ्गम्।
ददर्श पुण्यानि महाश्रमाणि
सुरर्षिसङ्घोत्तमसेवितानि॥ ५८॥
अनुवाद
सुरेन्द्र के शिखर सबसे ऊँचा शिखर था, जो सोने से बना हुआ दिखाई देता था। जब हनुमानजी वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने परम पवित्र और विशाल आश्रम देखे, जिसमें देवर्षियों का उत्तम समुदाय निवास करता था।