श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  6.74.58 
 
 
स तं समासाद्य महानगेन्द्र-
मतिप्रवृद्धोत्तमहेमशृङ्गम्।
ददर्श पुण्यानि महाश्रमाणि
सुरर्षिसङ्घोत्तमसेवितानि॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
 
  सुरेन्द्र के शिखर सबसे ऊँचा शिखर था, जो सोने से बना हुआ दिखाई देता था। जब हनुमानजी वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने परम पवित्र और विशाल आश्रम देखे, जिसमें देवर्षियों का उत्तम समुदाय निवास करता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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