श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  6.74.57 
 
 
नानाप्रस्रवणोपेतं बहुकन्दरनिर्झरम्।
श्वेताभ्रचयसंकाशै: शिखरैश्चारुदर्शनै:।
शोभितं विविधैर्वृक्षैरगमत् पर्वतोत्तमम्॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  संकलित जलमार्गों से सजे हुए, अनेक गुफाओं और झरनों से सुशोभित, श्वेत बादलों के समूह की तरह प्रतीत होने वाली ऊँची चोटियों और विभिन्न प्रकार के वृक्षों से अलंकृत, श्रेष्ठ पर्वत पर हनुमानजी पहुँच गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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