श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  6.74.53 
 
 
स पर्वतान् पक्षिगणान् सरांसि
नदीस्तटाकानि पुरोत्तमानि।
स्फीताञ्जनांस्तानपि सम्प्रवीक्ष्य
जगाम वेगात् पितृतुल्यवेग:॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
 
  उनकी गति उनके पिता वायु की तरह तीव्र थी। उन्होंने अनगिनत पर्वतों, पक्षियों, झीलों, नदियों, तालाबों, नगरों और समृद्ध क्षेत्रों को देखते हुए बहुत तेज़ी से आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.