श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  6.74.52 
 
 
स सागरं घूर्णितवीचिमालं
तदम्भसा भ्रामितसर्वसत्त्वम्।
समीक्षमाण: सहसा जगाम
चक्रं यथा विष्णुकराग्रमुक्तम्॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  हनुमान जी ने सर्वत्र फैली हुई लहरों के साथ महासागर को देखा, जिसमें सभी जल-जन्तु घूम रहे थे। वे भगवान विष्णु के हाथ से निकले चक्र की तरह ही तेज़ी से आगे बढ़े।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.