स सागरं घूर्णितवीचिमालं
तदम्भसा भ्रामितसर्वसत्त्वम्।
समीक्षमाण: सहसा जगाम
चक्रं यथा विष्णुकराग्रमुक्तम्॥ ५२॥
अनुवाद
हनुमान जी ने सर्वत्र फैली हुई लहरों के साथ महासागर को देखा, जिसमें सभी जल-जन्तु घूम रहे थे। वे भगवान विष्णु के हाथ से निकले चक्र की तरह ही तेज़ी से आगे बढ़े।