वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना
»
श्लोक 51
श्लोक
6.74.51
स तौ प्रसार्योरगभोगकल्पौ
भुजौ भुजंगारिनिकाशवीर्य:।
जगाम शैलं नगराजमग्रॺं
दिश: प्रकर्षन्निव वायुसूनु:॥ ५१॥
अनुवाद
play_arrowpause
गरुड़ के समान पराक्रमी हनुमान जी की दोनों भुजाएँ सर्प के शरीर की भाँति दिखाई देती हैं। वे अपनी भुजाओं को फैलाते हुए और पूरी दिशाओं को खींचते हुए जैसे श्रेष्ठ पर्वत राजा हिमालय की ओर गए।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.